Thru, 16 Jan 2025: Fact Recorder
इस नए वर्ष में देश में पहली बार डिजिटल जनगणना का काम आगे बढ़ने के आसार हैं। दस साल के अंतराल के हिसाब से 2011 के बाद 2021 में जनगणना होनी चाहिए थी। यह इसलिए नहीं हो सकी, क्योंकि 2020 और 2021 में पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी। भारत भी उसकी चपेट में था। ऐसे में जनगणना की तैयारी धरी रह गई।
2022 में भी कोविड को लेकर माहौल बना रहा, फिर संसदीय चुनाव आ गए, जिसमें बड़ी संख्या में उसी सरकारी अमले को जुटना था, जो जनगणना करता है। 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार तीसरी बार सत्ता में लौटी तो जनगणना होने की उम्मीद जगी। इस बार जो जनगणना होगी, वह पुरानी गलतियों को खत्म करने के साथ पीएम मोदी के सूत्र वाक्य ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नजरिये से होगी।
इस बीच कांग्रेस की ओर से लोगों को जनगणना के नाम पर बरगलाने की कोशिश हो रही है। यह याद करना जरूरी है कि राजीव गांधी पिछड़ों के हित वाली नीतियों के खिलाफ थे। यही कारण था कि जब भाजपा के सहयोग से केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो भाजपा ने पिछड़ा वर्गों के हितों की रक्षा के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने में अहम भूमिका निभाई। तब नेता विपक्ष के रूप में राजीव गांधी ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का भारी विरोध किया था।
लोगों को भ्रमित करने के लिए जाति आधारित जनगणना की जो बात अब कांग्रेस कर रही है, वह 2011 के मनमोहन सिंह सरकार के समय में हुई भी थी, लेकिन उसका डाटा कभी जारी नहीं किया गया। शायद आंकड़े कांग्रेस के एजेंडे के अनुरूप नहीं रहे होंगे। पीएम मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार हर तरह की रिसर्च के बाद पुरानी गलतियों में सुधार के साथ पहली बार डिजिटल जनगणना की तैयारी में जुटी है तो भ्रम फैलाकर क्रेडिट लेने का प्रयास शुरू हो गया है।
जब देश पर अंग्रेजों का शासन था तो ब्रिटिश सरकार ‘बांटो और राज करो’ के सिद्धांत पर चलती थी। जातियों के आधार पर सामाजिक विभाजन के इरादे से तब जाति आधारित जनगणना कराई गई। ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के हित में नीति बनाने की नीयत कभी नहीं थी। लक्ष्य था भारत पर जैसे-तैसे शासन करना और उसे सामाजिक रूप से विभाजित करना।
जब देश आजाद हुआ, तो नेहरू सरकार ने अपने सोच में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं किया। 2014 से भारत ने बड़े बदलाव का दौर देखना शुरू किया। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार में जाति आधारित सर्वे के लिए हरी झंडी दिखाई। नीतीश कुमार ने इस काम को अंजाम दिया।
क्रेडिट लेने वालों ने तब भी लोगों को भ्रमित किया। वे अब भी ऐसा कर रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी कितनी दूरदृष्टि रखते हैं, यह नई जनगणना में दिख जाएगा। इसकी पुष्टि इससे होती है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता ने खुले मंच से यह स्वीकार किया कि अब जिस तरह की जनगणना मोदी सरकार कराने वाली है, संप्रग सरकार के रहते कांग्रेस ने जनगणना में वैसा जातिगत रिकॉर्ड नहीं जुटाकर गलती की थी।
जनगणना के जिस रूप की परिकल्पना की जा रही है, वह एक रिकॉर्ड होगा। ऐसा रिकॉर्ड जो हर समय डिजिटल रूप में उपलब्ध होगा, ताकि जिस समय जिस योजना पर विचार किया जा रहा हो, उसमें उसका उपयोग हो सके। समूह के आकार, भौगोलिक वितरण, लैंगिक संरचना और सामाजिक-आर्थिक स्थिति का ऐसा डिजिटल रिकॉर्ड, जो भारत के सामाजिक तानेबाने की पूरी तस्वीर दिखा सके।
दरअसल नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 14ए के तहत सभी नागरिकों का पंजीकरण करना और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना नेशनल पापुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर का उद्देश्य है। वन नेशन-वन इलेक्शन की जो बात अब आगे बढ़ चुकी है, उसके लिए भी यह जनगणना अत्यंत लाभकारी होगी। जनगणना में एकत्रित डिजिटल जानकारी निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के निर्धारण और सामाजिक समूहों और महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का आधार बनेगी।
यह जरूरी भी है, क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहित करने के लिए 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) के जरिये 2000 तक परिसीमन पर रोक लगा दी गई थी। 84वें संशोधन अधिनियम (2002) से इस रोक को 2026 तक बढ़ा दिया गया। यदि प्रस्तावित जनगणना शीघ्र शुरू होती है तो 2026 में इसका रिकॉर्ड जारी हो जाएगा।
एक लंबे समय से सामाजिक समूहों और महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण पुरानी और आधी-अधूरी जानकारी पर निर्भर था, जो डिजिटल जनगणना के बाद ज्यादा संगठित संग्रह (डेटाबेस) होगा। यह डाटाबेस कई उद्देश्यों को साधेगा और जनोपयोगी भी होगा। जन्म से लेकर शिक्षा, रोजगार और यहां तक कि आयकर के लिए नीतियों के निर्धारण में इसकी अहम भूमिका होगी।
विपक्ष यह कहकर भाजपा को निशाने पर लेता रहा है कि वह आरक्षण विरोधी है, लेकिन उसके फैलाए तमाम भ्रम दूर करते हुए आरक्षण को लेकर भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने वक्त-वक्त पर सब कुछ साफ किया है। अधिक समावेशी, उत्तरदायी, न्यायसंगत और सुरक्षित समाज की रूपरेखा बनाने वाली डिजिटल जनगणना देश और समाज के लिए एक सौगात होगी। ऐसे में विपक्ष को जनगणना का इंतजार करना चाहिए।