रिलेशनशिप- दुख का सबसे बड़ा कारण दूसरों से उम्मीद: अपनी खुशी की जिम्मेदारी खुद लें, साइकोलॉजिस्ट के 8 सुझावों पर गौर करें

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13 January 2025:Fact Recorder

हर कोई अपने जीवन में खुश रहना चाहता है। इसकी चाहत में वह पूरी जिंदगी भटकता रहता है। अपने आपसे या अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट होने का अहसास ही खुशी है। इसके अलावा हमारी कुछ व्यवहारिक आदतें भी खुशी का कारण बनती हैं।

हालांकि कई बार अपनों से ज्यादा उम्मीदें लगाना हमारी खुशी को छीन सकता है। ये उम्मीदें पार्टनर, दोस्त या फैमिली मेंबर किसी से भी हो सकती हैं। साइकोलॉजिस्ट भी सुझाव देते हैं कि खुश रहना है तो दूसरों से उम्मीदें करना बंद कर दें। इससे खुद को अनावश्यक दुखों से बचा सकते हैं।

तो आज रिलेशनशिप कॉलम में बात दूसरों से उम्मीद किए बगैर जीवन में खुश रहने की। साथ ही जानेंगे कि उम्मीदें कैसे दुख का कारण बनती हैं।

दुख का सबसे बड़ा कारण है उम्मीद

श्रीमद्भागवत महापुराण में एक उक्ति है, ‘आशा हि परमं दुःखं।’ इसका अर्थ है कि ‘आशा या उम्मीद ही दुख का सबसे बड़ा कारण है।’ इसलिए किसी भी व्यक्ति से अनावश्यक उम्मीदें नहीं करनी चाहिए। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि सच्ची खुशी दूसरों पर निर्भर होने के बजाय आत्मनिर्भरता में है।

लोग किस तरह की उम्मीदों से होते हैं दुखी

हम अपने दोस्त, पार्टनर, रिश्तेदार या फैमिली मेंबर्स से अधिक लगाव रखते हैं। इसलिए उनसे ज्यादा उम्मीदें भी रखते हैं। यही उम्मीदें हमारे दुख का कारण बनती हैं। इसे एक उदाहरण से समझिए-

कोई व्यक्ति अपने पार्टनर से यह उम्मीद करे कि उसका व्यवहार जैसा आज है, हमेशा वैसा ही बना रहेगा। लेकिन कई बार रिश्तों में आए उतार-चढ़ाव के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाता है। समय के साथ हमारे रिश्तों में भी कुछ बदलाव आता है। यह बदलाव हमारे दुख का कारण बन सकता है।